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Showing posts from June, 2025

📘 Dhammapad - ३. चित्तवग्गो – चित्त (मन)

  📘 ३. चित्तवग्गो – चित्त (मन) (गाथा ३३ ते ४३, पालि ते हिंदी) ३३. पाळि: फन्दनं चपलं चित्तं, दूरक्खं दुन्‍निवारयं। उजुं करोति मेधावी, उसुकारो व तेजनं॥ हिंदी: मन चंचल है, फंसाने वाला है, दूर तक भागने वाला और सर्वत्र भटकने वाला है – जिसे रोकना कठिन है। बुद्धिमान व्यक्ति इसे सीधा कर लेता है, जैसे तीर बनाने वाला अपने तीर को सीधा करता है। ३४. पाळि: वारिजोव थले खित्तो, ओकमोकत उब्भतो। परिफन्दतिदं चित्तं, मारधेय्यं पहातवे॥ हिंदी: जैसे कमल जल से बाहर निकाल कर थल पर रखने से हिलने लगता है, वैसे यह मन भी चंचल होता है। इसलिए, जो मरण का कारण बनता है, ऐसे चित्त को त्याग देना चाहिए। ३५. पाळि: दुन्‍निग्गहस्स लहुनो, यत्थकामनिपातिनो। चित्तस्स दमथो साधु, चित्तं दन्तं सुखावहं॥ हिंदी: यह मन कठिनता से वश में आता है, हलका और इच्छानुसार गिरनेवाला है। इसलिए मन का वश में करना अच्छा है – वश में आया हुआ मन सुखदायक होता है। ३६. पाळि: सुदुद्दसं सुनिपुणं, यत्थकामनिपातिनं। चित्तं रक्खेथ मेधावी, चित्तं गुत्तं सुखावहं॥ हिंदी: मन अत्यंत सूक्ष्म और देख पाने में कठिन है, यह इच्छानुसार भ...

धम्मपद: अप्पमादवग्ग (Appamādavagga) - सावधानी का अध्याय

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  धम्मपद: अप्पमादवग्ग (Appamādavagga) - सावधानी का अध्याय गाथा 21 पालि: अप्पमादो अमतपदं, पमादो मच्चुनो पदं। अप्पमत्ता न मीयन्ति, ये पमत्ता यथा मता।। हिंदी अनुवाद: सावधानी अमरता का मार्ग है, असावधानी मृत्यु का मार्ग है। सावधान लोग नष्ट नहीं होते, पर असावधान लोग मानो मरे हुए हैं। व्याख्या: सावधानी निर्वाण की ओर ले जाती है, जबकि असावधानी व्यक्ति को आध्यात्मिक मृत्यु की ओर ले जाती है। सावधान व्यक्ति जीवन में सजग रहता है, जबकि असावधान व्यक्ति उद्देश्यहीन होता है। गाथा 22 पालि: एतं विसेसतो ञत्वा, अप्पमादम्हि पण्डिता। अप्पमादे पमोदन्ति, अरियानं गोचरे रता।। हिंदी अनुवाद: इस विशेषता को जानकर, बुद्धिमान लोग सावधानी में रमते हैं। वे सावधानी में आनंदित होते हैं और श्रेष्ठ लोगों के मार्ग में रत रहते हैं। व्याख्या: बुद्धिमान व्यक्ति सावधानी के महत्व को समझकर उसका पालन करते हैं और उसमें आनंद पाते हैं। वे अरहंतों के पवित्र मार्ग का अनुसरण करते हैं। गाथा 23 पालि: ते झायिनो साततिका, निच्चं दळ्हपरक्कमा। फुसन्ति धीरा निब्बानं, योगक्खेमं अनुत्तरं।। हिंदी अनुवाद: वे ध्यान करने वाले, निरंतर प्रयत्नशील ...

धम्मपद ! यमकवग्ग ! भाग - 1 में कुल 20 गाथाएँ हैं।

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  यमकवग्ग में कुल 20 गाथाएँ हैं।  यमकवग्गो  गाथा १ मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया। मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा। ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कं व वहतो पदं॥ भाषान्तर: सभी मानसिक अवस्थाओं का अगुवा मन है, मन ही उनका प्रधान है, वे सभी मनोमय हैं। यदि कोई व्यक्ति दूषित मन से कुछ बोलता या करता है, तो दुःख उसके पीछे वैसे ही चलता है, जैसे गाड़ी का पहिया खींचने वाले बैल के पैर के पीछे-पीछे चलता है। गाथा २ मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया। मनसा चे पसन्नेन, भासति वा करोति वा। ततो नं सुखमन्वेति, छाया व अनपायिनी॥ भाषान्तर: सभी मानसिक अवस्थाओं का अगुवा मन है, मन ही उनका प्रधान है, वे सभी मनोमय हैं। यदि कोई व्यक्ति प्रसन्न मन से कुछ बोलता या करता है, तो सुख उसके पीछे वैसे ही चलता है, जैसे कभी न हटने वाली छाया। गाथा ३ अक्कोच्छि मं अवधि मं, अजिनि मं अहासि मे। ये च तं उपनय्हन्ति, वेरं तेसं न सम्मति॥ भाषान्तर: "उसने मुझे गाली दी, उसने मुझे मारा, उसने मुझे जीत लिया, उसने मुझे लूट लिया।" जो लोग इस प्रकार की बातों में उलझे रहते हैं, उनका वैर कभी शांत नहीं होता। गाथा ४ अक्कोच्छि म...

बुद्ध वंदना:

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  बुद्ध वंदना : नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासमबुद्धस्स। नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासमबुद्धस्स। नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासमबुद्धस्स। बुद्धं सरणं गच्छामि। धम्मं सरणं गच्छामि। संघं सरणं गच्छामि। दुतियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि। दुतियम्पि धम्मं सरणं गच्छामि। दुतियम्पि संघं सरणं गच्छामि। ततियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि। ततियम्पि धम्मं सरणं गच्छामि। ततियम्पि संघं सरणं गच्छामि। पंचसील : पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि। अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि। कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि। मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि। सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।

The Vanarinda Jataka — A Tale of Wisdom and Courage

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  The Vanarinda Jataka — A Tale of Wisdom and Courage Discover the inspiring Vanarinda Jataka — how the Bodhisattva monkey outwitted the crocodile with truth, wisdom, patience, and courage. The Vanarinda Jataka — A Tale of Wisdom and Courage The Vanarinda Jataka (Seventh Jataka) is one of the many inspiring stories from the Jataka Tales, which recount the previous lives of the Buddha. Each story carries profound moral teachings. This particular tale showcases how wisdom, truthfulness, patience, and sacrifice can help overcome even life-threatening challenges. The Background The Buddha narrated this story while residing at Veluvana Monastery. It was told in reference to Devadatta’s attempts to harm him. The Buddha explained that this was not the first time Devadatta had tried to kill him; even in the distant past, he had made similar attempts. The story that follows takes us to one of those earlier lifetimes. The Story of the Past Long ago, during the reign of King Brahmadatta in Va...

मराठी जातक कथा - वानरिंद जातक (सातवे जातक)

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वानरिंद जातक (सातवे जातक) प्रस्तावना: ही कथा भगवान बुद्धांनी वेलुवनामध्ये वास्तव्यास असताना सांगितली आहे. त्या वेळी देवदत्ताने त्यांना मारण्याचा कट रचला होता. ही गोष्ट ऐकून बुद्ध म्हणाले, "भिक्षूंनो, ही पहिली वेळ नाही की देवदत्ताने मला मारण्याचा प्रयत्न केला आहे. याआधीही त्याने हे केले होते, पण तो यशस्वी होऊ शकला नाही." असे म्हणून त्यांनी ही अतीतकथा सांगितली. अतीतकथा: पूर्वी काशीच्या वाराणसी नगरीत ब्रह्मदत्त नावाचा राजा राज्य करीत होता. त्यावेळी बोधिसत्त्व वानर म्हणून जन्मले. मोठे होऊन ते घोड्याच्या पाडसाएवढे मोठे, बलवान व एकटेच जंगलात फिरणारे झाले. ते एका नदीच्या काठी राहत होते. त्या नदीच्या मधोमध एक छोटेसे बेट होते, जेथे आंबा, फणस (पनस) व इतर फळझाडांनी भरलेले होते. बोधिसत्त्व आपल्या शक्तीच्या बळावर नदीच्या एका काठावरून उडी मारून त्या बेटावरील एका दगडावर उतरायचे आणि तिथून दुसरी उडी मारून बेटावर जायचे. तिथे विविध फळे खाऊन संध्याकाळी पुन्हा तसाच परत यायचे. हीच त्यांची रोजची दिनचर्या होती. त्या नदीत एक मगर आपल्या पत्नीबरोबर राहत होती. त्याची पत्नी बोधिसत्त्वाला रोज असे येताना-...

हिन्दी जातक कथा - वानरिंदजातक (सातवाँ जातक)

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वानरिंदजातक (सातवाँ जातक) प्रस्तावना : यह कथा भगवान बुद्ध ने वेलुवन में रहते हुए देवदत्त के द्वारा उनको मारणे की कोशिश के संदर्भ में कही। उस समय भगवान ने सुना कि देवदत्त उनको मारणे की योजना बना रहा है। तब उन्होंने कहा , " भिक्षुओं , यह पहली बार नहीं है कि देवदत्त उनको मारणे की कोशिश कर रहा है। पहले भी उसने ऐसा किया था , पर वह इसमें सफल नहीं हो सका।" ऐसा कहकर उन्होंने यह अतीत की कथा सुनाई। अतीत की कथा : प्राचीन काल में काशी के वाराणसी में राजा ब्रह्मदत्त का शासन था। उस समय बोधिसत्त एक वानर के रूप में जन्मे। बड़े होने पर वह एक घोड़े के बछड़े के आकार का , बलवान और एकाकी विचरण करने वाला बन गया। वह नदी के किनारे रहता था। उस नदी के बीच में एक छोटा सा टापू था , जो आम , पनस (कटहल) आदि विभिन्न फलदार वृक्षों से भरा हुआ था। बोधिसत्त , जो नाग (हाथी) जैसा बलशाली था , नदी के इस किनारे से उछलकर टापू के बीच में एक चट्टान पर उतरता , फिर वहाँ से दूसरी उछाल मारकर टापू पर पहुँच जाता। वहाँ वह विभिन्न प्रकार के फल खाता और शाम को उसी तरह वापस अपने स्थान पर लौट आता। अगले दिन फिर वही करता। इस तर...